सूरज

सूरज

Sunday, May 06, 2007

हाँ मैं कर सकता हूँ...

मुझे अँधेरा दो तािक मैं वहाँ सबेरा ला सकूं.
और दुिनया में अमन चैन का बसेरा ला सकूं.
हाँ! मुझे चुनॉितयाँ दो , तािक मैं उन्हें सरल कर सकूं.
दुिनया के रहस्य िवरल कर सकूं.

दो मुझे िनराशा तािक मैं उसे उल्लास में बदल सकूं.
और सुख की एक िनश्वास भर सकूं.
दो मुझे िचंताएँ, मैं उन्हें हर सकूं.
प्रभु का मंिदर , घर घर कर सकूं.
दो मुझे बाधाएं, मैं उन्हें पार कर सकूं;
और िवश्व के सामने कड़ी िमसाल रख सकूं.
'दो मुझे दुःख , तािक मैं उन्हें सुख में बदल सकूं.
यह प्यारी धरा स्वर्गसम कर सकूं.

लड़ूँ मैं इन बुराइयों और क्लेश से.
आर्त न होगा मेरा मन, इन भय िवशेष से.
इन बुराइयों पर अपनी िवजय पताका फह्राऊँ,
लड़ूँ लड़ूँ और आगे बढ़ता जाऊं.

No comments: